हैलो दोस्तों आज मैं आपलोगों को एक ऐसे ब्रांड की कहानी के बारे में बताने जा रहा हूँ जिसने भारत में श्वेत क्रांति ली दी और इसी क्रांति के कारण भारत दुनिया में सबसे ज्यादा दुग्ध उत्पादन करने वाला देश बन गया ,हर कहानी की तरह इस कहानी में भी नायक है पर इस कहानी में दो नायक हैं और जो - जो इस कहानी के नायक हैं उनका नाम है त्रिभुवन दास पटेल जी और डॉ वर्गीस कुरियन ,अगर अमूल कंपनी को एक शरीर मान लिया जाए तो हम यह कह सकते हैं की शरीर को बनाने का काम त्रिभुवन दास जी ने किया तो उस शरीर में जान फुंकने का काम डॉ वर्गीस कुरियन ने किया इन दोनों के द्वारा दिए हुए अमूल्य योगदान के कारण ही अमूल जैसी कंपनी बन सकी।।
तो आइए पहले थोड़ी थोड़ी जानकारी ले लेते हैं इन दोनों नायक के बारे में
THE BIOGRAPHY OF TRIBHUVAN DAS PATEL JI
THE BIOGRAPHY OF TRIBHUVAN DAS PATEL JI
त्रिभुवन दास जी का जन्म 22 अक्टूबर 1903 को आनंद जो की गुजरात में है वहां हुआ, त्रिभुवन दास जी कैरा जिले के एक बहुत ही कर्मठ और सक्रिय नेता थे भारतीय स्वतंत्रता संग्राम में ये महात्मा गाँधी ,सरदार वल्लभ भाई पटेल के प्रिय अनुयायी में से एक थे ,कई बार इन्हें जेल में भी डाला गया पर इनका नाम तब चर्चा में आया जब उन्होनें कैरा जिले के दुग्ध उत्पादक किसानों को न्याय दिलाने के लिए आंदोलन किया ,और उस आंदोलन के फलस्वरूप उन्होनें कैरा जिला दुग्ध उत्पादक सहकारी संघ लिमिटेड की स्थापना की यही कारण था की आज तक जहाँ कुरियन साहब को भारत का दूधवाला कहा जाता है वहीँ त्रिभुवन दास जी को सहकारी आंदोलन का पिता कहा जाता है।
The biography of Dr.vergis kuriyan भारत में श्वेत क्रांति के जनक वर्गीज कुरियन का जीवन परिचय
वर्गीज कुरियन का जन्म 26 नवंबर 1921 को केरल के कालीकट जिसे अब कोझिकोड के नाम से जानते हैं में एक ईसाई परिवार के घर में हुआ था उनके पिता का नाम डेस था जो कि एक चिकित्सक थे और उनके माता का नाम डैश था जो कि एक बहुत ही कुशाग्र बुद्धि के साथ साथ एक अच्छी पियानो प्लेयर भी थी।
वर्गीस कुरियन बचपन से ही पढाई में बहुत होशियार थे पढाई के साथ साथ वे खेलों में भी बहुत रूचि लेते थे यही कारण था की स्कूल के समय उन्होनें क्रिकेट ,बैडमिंटन ,मुक्केबाजी और टेनिस जैसे खेलों में अपने स्कूल का नेतृत्व किया ,1940 में लोयला कॉलेज से भौतिकी शास्त्र से स्नातक करने के बाद उन्होनें कॉलेज ऑफ़ इंजीनियरिंग से मैकेनिकल इंजीनियरिंग में भी स्नातक किया ,फिर इंजीनियरिंग के बाद वो जॉब करने लगे टाटा स्टील जमशेदपुर में ,जॉब के साथ साथ उन्होनें बैंगलोर में डेरी विभाग में 9 महीने का विशेष प्रशिक्षण भी प्राप्त किया फिर वे सरकार से मिली क्षात्रिवृति के दम पर अमेरिका चले गए और वहां के मिशिगन स्टेट यूनिवर्सिटी से 1948 में डिस्टिंक्शन नंबर से मैकेनिकल इंजीनियरिंग में मास्टर इन साइंस किया ,दरअसल उन्हें जो क्षत्रिवृति मिली थी वे डेरी टेक्नोलॉजी की पढाई करने के लिए मिली थी पर उन्होनें सोचा की भारत अब आजाद होने वाला है और आजादी के बाद देश को और आगे बढ़ाने के लिए नुक्लिएर साइंस में बहुत कुछ किया जा सकता है इस कारन उन्होनें मेट्रॉलिजिकल एंड नुक्लिएर विज्ञानं में मास्टर इन साइंस किया और डेरी इंजीनियरिंग को एक साइड विषय के तौर पर रखा 1948 में वे वापस भारत लौटे और उसके बाद भारत में दुग्ध क्रांति लाने में बहुत अहम योगदान दिया यही कारण था की दुग्ध के क्षेत्र में उनके योगदान को देखते हुए उन्हें कई तरह के अवार्डों से नवाजा गया जिसमें प्रमुख अवार्ड है
रमन मैग्सेसे अवार्ड (1963 ) ,पद्मश्री अवार्ड (1965 ) ,पद्म भूषण अवार्ड (1966 ),कृषि रत्न अवार्ड (1986 ),कोनिंग फाउंडेशन दवरा वाटलर शांति पुरुस्कार(1986) ,वर्ल्ड फ़ूड प्राइज फाउंडेशन द्वारा वर्ल्ड फ़ूड प्राइज अवार्ड (1989 ) ,मिशिगन स्टेट यूनिवर्सिटी द्वारा डिस्टिंगशङ एलुमिनी(1991 ), वर्ल्ड डेरी एक्सपो के द्वारा इंटरनेशनल पर्सन ऑफ़ द ईयर (1993 ),भारत सरकार द्वारा पद्म विभूषण(1999 ) ये सभी अवार्ड प्रमुख हैं इसके अलावा भी उन्हें कई तरह के अवार्ड मिले ,
उन्होनें अपने जीवन में घटित हुई अच्छी बुरी कठिनाईयों और संघर्षों को लेकर किताबें लिखी जैसे "एन अनफिनिड ड्रीम ",,आई टू हैड आई ड्रीम "आई टू हैड आई ड्रीम पर ही एक ऑडियो बुक जिसका नाम था "द मैन हु मेड एलीफैंट डांस "को उनके द्वारा 2005 में रिलीज किया गया।।
History and success story of Amul brand (अमूल ब्रांड का इतिहास और सफलता की कहानी )
ये तो थी इस कहानी के मुख्य नायक वर्गीस कुरियन के बारे में कुछ बातें अब चलिए जानते हैं की कैसे इस नायक का आगमन होता है इस कहानी में और भारत में चारों तरफ दुग्ध क्रांति सी छा गई ,कैसे भारत के अधिकतर किसानों का झुकाव अधिक से अधिक मवेशियों को पालने और उनका ख्याल रखने के लिए हो गया और कैसे भारत के अधिकतर किसानों के चेहरे पे खुशियाँ आ गई,और जो अभी तक चली आ रही है यानी की कूल मिलाकर चलिए विस्तार से जानते हैं की कैसे वर्गीस कुरियन और उनके अन्य साथियों के कारण भारत में ये सब हुआ ,और कैसे अमूल बना यानि की अब जानते हैं अमूल ब्रांड की कहानी।।
तो दोस्तों कहानी की शुरुआत होती है 1945 के लगभग में जब पूरे देश में भारत को आजाद करने की सफल कोशिस चारों तरफ हो रही थी और हर तरफ लोग अपने अधिकार को लेके जागरूक हो रहे थे ,उसी बिच गुजरात के कैरा जिले के दुग्ध उत्पादक भी जागरूक हो गए उन्हें लगा की उन्हें उनके दूध की उचित कीमत नहीं मिल पा रही है उन्होनें ने जब इसका विरोध किया तो उनपे शोषण किया गया ,अब इन्हीं समस्याओं के समाधान के लिए वहां के दुग्ध उत्पादक स्थानीय नेता त्रिभुवन दास जी के नेतृत्व में लौह पुरुष कहे जाने वाले बड़े नेता सरदार वल्लभ भाई पटेल से मिले और उन्हें अपनी सारी समस्याएं बताई ,उन लोगों की सारी समस्याएँ सुनने के बाद उन्होनें उन सभी की अपनी कोऑपरेटिव सोसाइटी खोलने के लिए कहा ,दरअसल वहां के सभी लोग पोलसन डेरी को ही दूध देते थे जो की एक मात्र संस्था थी जो की इन सबसे दूध लेकर बॉम्बे या अन्य जगहों पर दूध निर्यात करती थी ,अब बस इसी का फायदा उठाकर वह डेरी उनका शोषण करती थी और उन्हें उनके दूध का उचित कीमत नहीं दिया करती थी
अब सरदार वल्लभ भाई पटेल ने उन सभी को सरकार से अनुमति लेकर अपनी कोपरेटिव सोसाइटी खोलने के लिए कहा,और कहा की अगर सरकार अनुमति न दे तो उसके लिए धरना और आंदोलन करने के लिए भी तैयार रहने के लिए कहा।
उनके यह सुझाव वहां के सभी लोगों को अच्छा लगा और सभी लोगों ने कहा की हाँ हम सभी ऐसा ही करेंगे और सभी लोग उनसे मिलने के बाद वापस अपने अपने घर लौट आये ,उनके वापस आ जाने के बाद उन सभी को संगठीत करने के लिए वल्लभ भाई पटेल ने मोरारजी देसाई को कैरा भेजा ,मोरारजी देसाई वहां जाने के बाद त्रिभुवन दास जी के साथ सभी लोगों को लेकर जब बम्बई सरकार से अनुमति लेने पहुंचे तो सरकार ने अनुमति देने से मना कर दिया ,फिर क्या था वल्लभ भाई पटेल जी के कहे अनुसार वहां के सभी लोगों ने धरना दे दिया और आंदोलन पर उतर आये यही कारण था की वहां से एक बूँद दूध भी पोलसन डेरी को नहीं दिया गया जिससे सभी प्रमुख शहरों में दूध की भारी कमी हो गई और सभी लोग दूध के लिए बेचैन हो गए और यह 15 दिनों तक चलता रहा फिर अंत में सरकार के द्वारा 15 वें दिन अपने अधिकारीयोँ को कैरा जिले में वहां के किसानों से बात करने के लिए इस उम्मीद से भेजा गया की वे लोगों को मना लेंगे ,पर यहाँ पर तो त्रिभुवन दास जी के नेतृत्व में सभी लोग अपने जिद पर अड़े हुए थे की अब और नहीं ,नतीजतन उस अधिकारी के सामने ही सभी लोगों ने दूध को रोड पर फ़ेंक दिया और कहा की हम रोड पर फ़ेंक देंगे पर आपको नहीं देंगे आप ने बहुत शोषण किया है हम सब पर अब और नही सहेंगे ,फिर उस समय की अंग्रेजों की सरकार ने ये सोचकर अनुमति दे दी की ये सब क्या चला पाएंगे डेरी को ये सब तो अनपढ़ गँवार लोग है इन्हें क्या मालुम की दूध से क्या क्या किया जाया जा सकता है कोई पढ़ा लिखा इंसान तो है ही नहीं इसमें जो इन्हें लीड कर सके कुछ ही दिन में इनकी सारी सोसाइटी बंद हो जायेगी ,और इस तरह लोगों को पोलसन डेरी से छूटकारा मिला और त्रिभुवन दस जी के नेतृत्व में कैरा जिला दुग्ध उत्पादक संघ लिमिटेड की स्थापना 14 दिसंबर 1946 को की गई ,और फिर धीरे धीरे कैरा जिले के और गाँव भी इससे जुड़ते चले गए ,पर कहीं न कहीं उस अंग्रेज की बात सही हो रही थी और यह उस रफ़्तार से आगे नहीं बढ़ पा रही थी जिसकी उम्मीद थी ,अकेले त्रिभुवन दास पटेल जी किसी तरह इसको आगे ले जा रहे थे ,इसी बिच मुख्य नायक वर्गीस कुरियन का इस कहानी में आगमन होता है ,वो भी उनका आगमन मजेदार तरीके से होता है जब वे अपनी पढाई पूरी करने के बाद भारत वापस लौटे तो उन्हें क्षत्रिवृति में दिए हुए शर्त के अनुसार उन्हें कुछ दिन सरकार के लिए काम करना था वो भी डेरी विभाग में ही क्योंकि उन्हें क्षात्रिवृति तो डेरी विभाग के लिए ही मिला था जिसके कारण उन्होनें डेरी टेक्नोलॉजी की पढाई भी किया था साइड विषय के तौर पर ही सही पर उसकी पढाई भी अच्छे तरीके से उन्होनें किया था ,अब वहां से आने के बाद उनका स्थानांतरण आनंद शहर में कर दिया गया वहां पर वो बेमन से ही सही पर काम करने लगे ,वहां पर उन्हें काम करते हुए कुछ दिन ही बीता था की उन्हें त्रिभुवन दास जी के बारे में और उनके इस आंदोलन के बारे में मालुम हुआ जो की उस समय धीरे धीरे कर ही सही पर अंग्रेजों को टक्कर दे रही थी और इसमें एक तरह से जूझ रही थी और संघर्ष कर रही थी ,और जब उन्हें सारी बातें मालुम हुई तो ये बातें उन्हें रोमांचक कर गई और वे त्रिभुवन दास जी से मिले ,जहाँ वे कुछ दिन के बाद वहां से भी जाने वाले थे पर त्रिभुवन दास पटेल जी से मिलने के बाद और उनके कहने पर की इस आंदोलन को उन्हें जरुरत है ,वे तो पहले से ही देशभक्ति से ओत प्रेत थे देश की सेवा करना चाहते थे और यही कारण भी था की उन्होनें डेरी टेक्नोलॉजी के बदले नुक्लेअर इंजीनियरिंग की पढाई की और डेरी को साइड विषय के तौर पर रखा था ,पर इस समय उन्हें लगा की ये साइड विषय के दवारा ही देश की और अच्छे से सेवा कर सकते हैं ,फिर वे भी हो लिए त्रिभुवन दास जी के साथ और कर दिए अपने आप को पूरी तरह से देश सेवा में और जुड़ गए इस आंदोलन से और इस तरह त्रिभुवन दास जी को वो हीरा मिल गया जिसकी उन्हें तलाश थी ,वो हीरा मिल गया जो की इस आंदोलन को अपने शिक्षा ,अपने चालाकी और बुद्धि के दम पर आगे ले जाने वाला था और हुआ भी वैसा ही ,आंदोलन से जुड़ते ही कुरियन जी ने और लोगों को अपने साथ जोड़ा ,उस समय सहकारी समिति में जातिगत भेदभाव भी बहुत बढ़ गया था जिसके कारण और लोग जुड़ना पसंद नहीं कर रहे थे उस भेदभाव को भी बहुत हद तक कम कर लोगों को समझा बुझाकर इसमें जोड़ा इनके वानी से ,इनके काम करने के तरीकों से और इनके दवरा लोगों के बिच में इसको लेकर फैले जागरूकता को देखते हुए जो लोग अभी तक इस सोसाइटी से नहीं जुड़े हुए थे और पोलसन डेरी को ही दूध देने का काम कर रहे थे इस सोसाइटी से जुड़ते चले गए , उसके बाद वे और उनके सहयोगियों ने सोचा क्यों न इसकी मार्केटिंग की जाइए अच्छे तरीके से इसलिए एक अच्छे नाम की तलाश थी जो की छोटा हो और अच्छा भी हो इसलिए कुरियन से ने सभी लोगों को अपने अपने सुझाव देने के लिए कहा और कहा की जिस के भी मन में आये कोई अच्छा नाम वो बताये,कई तरह के नाम सामने उभरकर आये पर वहीँ दुग्ध शोधालय में काम करने वाले एक कर्मी ने नाम सुझाया अमूल्य ,जिसका मतलब होता है अनमोल और सबको यह नाम बहुत पसंद आया क्योंकि जो दूध का निर्यात सोसाइटी के अंतर्गत किया जा रहा था वो बहुत उच्च गुणवत्ता का होता था और लोग देखते ही कहते थे अरे ये तो अनमोल दूध है ,और साथ ही साथ यह नाम यह भी दर्शा रहा था की दूध की कोई कीमत नहीं होती है यह अनमोल होता है ,बस यही बात था यही कारण था की लोगों को यह नाम बहुत पसंद आया और अमूल्य में थोड़ा बदलाव करके नाम रख दिया गया अमूल ,और इस तरह अमूल ब्रांड का नाम अमूल पड़ा ,इसी बिच एक समस्या उत्पन्न हो गई थी वो ये थी की ठंढ के समय भैंस के दूध का उत्पादन तो अधिक हो ही रहा था गर्मी के अपेक्षा यानी की उत्पादन दूध का तो अचानक से बढ़ गया था और सालों के भांति पर अचानक से मांग तो नहीं बढ़ी थी दुध की ,तो अब कुरियन जी ने सोचा क्यों न इस समस्या को इस बार समाधान निकला जाए और दूध का पाउडर बना कर स्टोर करके रखा जाए ,पर एक समस्या थी वो ये थी की भैंस के दूध का पाउडर बनाया जाए तो कैसे बनाया जाए क्योंकि अभी तक गाय के दूध को ही पॉवडर में रूपांतरित किया जा सका था ,और सारे दुग्ध वैज्ञानिक यह मान चुके थे की भैंस के दूध का पाउडर नहीं बन सकता है क्योंकि इस को लेकर बहुत ही शोध हो चूका था पर सब असफल हो गए थे ,पर कुरियन जी सोचा क्यों न एक बार हम भी कोशिस करें और अपने कॉलेज के साथी एच् ऍम दलाया के साथ मिलकर इस पर शोध किया और उस असंभव काम को संभव कर डाला ,बना डाला भैंस के दूध का भी पाउडर ,जिसे अभी तक सारे वैज्ञानिक यह का रहे थे की ये संभव नहीं है ,और उनकी यह सफलता एक बहुत बड़ी समस्या का समाधान कर गई दुनिया की और तब से भैंस के दूध का भी पाउडर बनने लगा।
इसी बिच जब एक बार उस समय देश के प्रधानमंत्री लाल बहादुर शास्त्री जी वहां पहुंचे तो वे कुरियन जी के काम को देखकर बहुत प्रभावित हुए ,और उन्हें इस प्रक्रिया को पूरे भारत में चलाने के लिये कहा ताकि पूरे भारत में किसानों को फायदा पहुँच सके ,ताकि पूरे भारत में दूध की भरमार हो सके ,और कुरियन जी के राजी होने पर 1965 में राष्ट्रीय विकाश बोर्ड की स्थापना की गई और वर्गीस कुरियन को इसका मुख्य प्रभारी बनाया गया ,इसके गठन के लिए पैसों की जरुरत पड़ रही थी ,तो कर्ज के लिए विश्व बैंक के सामने प्रस्ताव रखी गई ,और वो कर्ज कुरियन ने अपनी चतुराई से पास भी करवा ली ,और इस तरह राष्ट्रीय डेरी विकाश बोर्ड की स्थापना हुई और उसस्के बाद एक क्रांति सी आ गई भारत में और वो थी श्वेत क्रांति जिसके बाद मानो भारत में दूध की नदियां सी बहने लगी हो।
और उधर कोआपरेटिव सोसाइटी भी कैरा के साथ आस पास का जगहों जैसे की मेहसाणा,बड़ौदा ,बांसकांठा ,साबरकांठा ,सूरत में भी फ़ैल चूका था फिर इस सभी को संगठित करने के लिए और इन्हें अच्छी सुविधा प्रदान करने के लिए ,और मार्केटिंग को और ज्यादा आसान बनाने के लिए इन सभी को आपस में मिला दिया गया यानी की इन्हें एक कर दिया गया और कैरा डिस्ट्रिक्ट कोआपरेटिव मिल्क प्रोडूसर्स यूनियन के जगह पर गुजरात कोआपरेटिव मिल्क मार्केटिंग फेडरेशन कर दिया गया यानि की (GCMMF) पर इसके अंतर्गत बनने वाले सभी उत्पादों को अमूल ब्रांड के नाम से ही बेचा गया जो की आज तक चला आ रहा है ,GCMMF के अंतर्गत और भी कई सहकारी समिति यानी की और भी कई कोआपरेटिव सोसाइटी जुड़ती चली गयी और आज तक नित नए जगह के लोग इससे जुड़ते चले आ रहे हैं ,इसके उत्पादों की मांग तो भारत में होती ही है भारत के साथ साथ अमूल ब्रांड के अंतर्गत बने उत्पादों की मांग विदेशों में भी खूब होती है ,यही कारण है की इसके उत्पादों का निर्यात भी विदेशों में खूब होता है ,
आज अमूल के अंतर्गत बनने वाले उत्पादों को देखा जाए तो इसके अंतर्गत बनने वाले उत्पादों में जो प्रमुख रूप से हैं वे है
हाँ एक बात और मैं बता दूँ की कभी कभी आपने अमूल गंजी का भी नाम सुना होगा पर वो जो गंजी बनता है वो किसी दूसरे कंपनी के द्वारा बनाया जाता है उसका इस कंपनी या यूँ कहे की अमूल मिल्क ब्रांड से कोई संबंध नहीं है।
वैसे कंपनी के द्वारा तो कई तरह के विज्ञापनों का प्रयोग किया जाता रहा है प्रचार प्रसार के लिए पर अमूल गर्ल आज भी अमूल के लिए पोस्टर गर्ल का काम करती है ,जो की विज्ञापनों के दुनिया में सबसे प्रसिद्ध विज्ञापनों और सबसे लम्बे समय से चल रहे विज्ञापनों में से एक मानी जाती है।
तो दोस्तों यह थी अमूल ब्रांड की कहानी आपको कैसी लगी आप हमें जुरूर बताइए
THE END
इसी बिच जब एक बार उस समय देश के प्रधानमंत्री लाल बहादुर शास्त्री जी वहां पहुंचे तो वे कुरियन जी के काम को देखकर बहुत प्रभावित हुए ,और उन्हें इस प्रक्रिया को पूरे भारत में चलाने के लिये कहा ताकि पूरे भारत में किसानों को फायदा पहुँच सके ,ताकि पूरे भारत में दूध की भरमार हो सके ,और कुरियन जी के राजी होने पर 1965 में राष्ट्रीय विकाश बोर्ड की स्थापना की गई और वर्गीस कुरियन को इसका मुख्य प्रभारी बनाया गया ,इसके गठन के लिए पैसों की जरुरत पड़ रही थी ,तो कर्ज के लिए विश्व बैंक के सामने प्रस्ताव रखी गई ,और वो कर्ज कुरियन ने अपनी चतुराई से पास भी करवा ली ,और इस तरह राष्ट्रीय डेरी विकाश बोर्ड की स्थापना हुई और उसस्के बाद एक क्रांति सी आ गई भारत में और वो थी श्वेत क्रांति जिसके बाद मानो भारत में दूध की नदियां सी बहने लगी हो।
और उधर कोआपरेटिव सोसाइटी भी कैरा के साथ आस पास का जगहों जैसे की मेहसाणा,बड़ौदा ,बांसकांठा ,साबरकांठा ,सूरत में भी फ़ैल चूका था फिर इस सभी को संगठित करने के लिए और इन्हें अच्छी सुविधा प्रदान करने के लिए ,और मार्केटिंग को और ज्यादा आसान बनाने के लिए इन सभी को आपस में मिला दिया गया यानी की इन्हें एक कर दिया गया और कैरा डिस्ट्रिक्ट कोआपरेटिव मिल्क प्रोडूसर्स यूनियन के जगह पर गुजरात कोआपरेटिव मिल्क मार्केटिंग फेडरेशन कर दिया गया यानि की (GCMMF) पर इसके अंतर्गत बनने वाले सभी उत्पादों को अमूल ब्रांड के नाम से ही बेचा गया जो की आज तक चला आ रहा है ,GCMMF के अंतर्गत और भी कई सहकारी समिति यानी की और भी कई कोआपरेटिव सोसाइटी जुड़ती चली गयी और आज तक नित नए जगह के लोग इससे जुड़ते चले आ रहे हैं ,इसके उत्पादों की मांग तो भारत में होती ही है भारत के साथ साथ अमूल ब्रांड के अंतर्गत बने उत्पादों की मांग विदेशों में भी खूब होती है ,यही कारण है की इसके उत्पादों का निर्यात भी विदेशों में खूब होता है ,
आज अमूल के अंतर्गत बनने वाले उत्पादों को देखा जाए तो इसके अंतर्गत बनने वाले उत्पादों में जो प्रमुख रूप से हैं वे है
- अमूल बटर
- अमूल पनीर
- अमूल यूएचटी दूध
- अमूल आइसक्रीम
- अमूल दही
- अमूल घी
- अमूल चॉकलेट
- अमूल मिठाई
- अमूल लैक्टोज फ्री मिल्क
- अमूल कैटल फीड
हाँ एक बात और मैं बता दूँ की कभी कभी आपने अमूल गंजी का भी नाम सुना होगा पर वो जो गंजी बनता है वो किसी दूसरे कंपनी के द्वारा बनाया जाता है उसका इस कंपनी या यूँ कहे की अमूल मिल्क ब्रांड से कोई संबंध नहीं है।
वैसे कंपनी के द्वारा तो कई तरह के विज्ञापनों का प्रयोग किया जाता रहा है प्रचार प्रसार के लिए पर अमूल गर्ल आज भी अमूल के लिए पोस्टर गर्ल का काम करती है ,जो की विज्ञापनों के दुनिया में सबसे प्रसिद्ध विज्ञापनों और सबसे लम्बे समय से चल रहे विज्ञापनों में से एक मानी जाती है।
तो दोस्तों यह थी अमूल ब्रांड की कहानी आपको कैसी लगी आप हमें जुरूर बताइए
THE END
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