(MDH )THE BRIEF HISTORY AND SUCCESS STORY OF MDH BRAND IN HINDI (MDH ब्रांड का इतिहास और सफलता की कहानी )

 
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महाशय धर्मपाल गुलाटी 
असली मसाले सच सच एम डी एच एम डी एच
जी हां दोस्तों आप लोग तो समझ ही गए होंगे कि आज  मैं किस ब्रांड के बारे में बात कर रहा हूं जी हां  ब्रांड के बारे में। 
 मैं यकीन के साथ कह सकता हूं कि आप अभी अपने किचन रुम में जा कर देखिए आपको एमडीएस ब्रांड का कोई न कोई मसाला जरूर मिल जाएगा ,अगर आपके किचन में नहीं है तो जाकर किराना दुकान से ले आइए वहां तो जरूर ही होगा ,भारत ही नहीं और कनाडा और यूएई के भी हर  किराना स्टोर में एम डी एच ब्रांड का कोई न कोई मसाला बिकते हुए जरूर मिल जाएगा अब मिले भी क्यों न मसाला के क्षेत्र में यह ब्रांड है ही इतना पॉपुलर , यह तो संक्षिप्त परिचय था दोस्तों  MDH  ब्रांड के बारे में तो चलिए अब  विस्तार से जानते हैं कि कैसे एक छोटे से घर में बनकर बिकने वाला मसाला आज हर घर तक पहुंच गया है, कैसे कुछ रुपए से स्टार्ट हुई कंपनी आज अरबों की कंपनी बन चुकी है, कैसे एक तांगेवाला आज भारत के सबसे बड़े मसाला ब्रांड का मालिक बन चुका है ,कैसे एक चौथी क्लास पास लड़का आज भारत में सबसे ज्यादा सैलरी पाने वाला सीईओ बन चुका है।
  •  एम डी एच का पूरा नाम महाशय दी हट्टी है हम एक तरह से कह सकते हैं की इसकी स्थापना  महाशय चुन्नीलाल ने सियालकोट जो कि अब पाकिस्तान में है वहां 1919 ईस्वी में किया  उस समाया यह बस एकक छोटा सा दुकान था जिसमें वो मिर्च मसाला बेचा करते थे। 
  • महाशय धर्मपाल गुलाटी जो कि इस कहानी के मुख्य किरदार है उनका जन्म 27 मार्च 1923  में हुआ, अब  इनकी पढाई की क्या बात करें महाशय जी के साथ ऐसी बात थी की  उन का मन पढ़ाई में नहीं लगता था किसी तरह उन्होंने चौथी पास की और ना चाहते हुए भी वे पांचवी में भी क्लास जाने लगे पर उनका मन  तो लगता नहीं था पढ़ाई में फिर एक समय ऐसा आया  कि उन्होंने स्कूल जाना छोड़ दिया अब उनके  मम्मी पापा परेशान हो गए वे सोचने लगे की ये करेगा तो क्या करेगा, फिर उन्होंने इन्हें बढ़ई के यहां लगवा दिया पर वहां भी इनका मन नहीं लगा तो फिर साबुन बनाने वाली कंपनी में लगा दिया कुल मिलाकर 15 वर्ष तक होते- होते इन्होंने बहुत सारे विभिन्न तरह के कंपनियों में काम किया है इनके बाबूजी हर वक्त इन्हें  कुछ करने के लिए उत्साहित करते रहते थे और इन्हें आगे बढ़ने के लिए प्रेरित करते रहते थे यही कारण था कि वह हर वो महाशय जी को  बड़े-बड़े लोगों के बारे में किस्सा सुनाया करते थे,सारे बड़े लोगों की किस्से तो वो मजे से सुनते तो थे पर वो कहीं और काम करने को तैयार नहीं हुए।
  • अंत में जब उनके बाबू जी ने देखा कि इनका  कहीं मन नहीं लग रहा है तो इन्हें भी  अपने साथ रख लिए उनका मसाला का कारोबार बहुत सही से चल रहा था और वह सियालकोट में दिग्गी मिर्च वाले के नाम से प्रसिद्ध हो गए। 
  • सब कुछ सही सही से चल रहा था कि भारत और पाकिस्तान का विभाजन हो गया तो  वे पाकिस्तान में सब कुछ छोड़ -छाड़ के अमृतसर होते हुए दिल्ली के करोलबाग जगह पर अपने बहन के घर  27 सितम्बर १९४७ आ गए , गुलाटी जी अपने साथ बस केवल 1500 रूपए लेकर  लाए थे। 
  • अब करोल बाग वह पहुंच चुके थे , था तो उनके पास 1500 रूपए ही अब उन्हें समझ में नहीं आ रहा था वह करें तो क्या करें फिर उन्होंने 650 रूपए में तांगा  खरीदा और दिल्ली के करोलबाग और कुतुब रोड के आस पास उसको खुद चलाने लगे ,वह तांगा चला तो रहे थे पर कहीं ना कहीं उन्हें लगने लगा था कि वह यह काम नहीं कर सकते हैं फिर कुछ दिनों के बाद ही उन्होंने तांगा चलाना छोड़ दिया और तांगे को कुछ दामों में बेच दिया , अब करे तो क्या करे तांगा तो बेच  दिया फिर उन्होंने सोचा कि क्यों ना अपना पुराना वाला ही रोजगार किया जाए मिर्च मसाला वाला क्योंकि मिर्च मसाला वाला ही काम उन्हें  अच्छी तरह से आता था और इस तरह वो लौट आए फिर से अपने पुराने धंधे में और करने लगे मिर्च मसाला का कारोबार है और फिर  वह बहुत जल्द ही मशहूर हो गए, चुकी वहां पर सियालकोट के और भी कई लोग करोल बाग के आस पास आकर बस चुके थे जब उन्हें मालूम हुआ कि सियालकोट वाले देगी मिर्च मसाला वाला भी यहां आ गए हैं तो वह बहुत खुश हुए और अपने घर के लिए सारे मसाले वहीँ से मंगवाने लगे.
  •  जब बिक्री बढ़ने लगी तो वे  पहाड़गंज के एक मसाले पीसने वाले से अपने  मसाला पिसवाने लगे ,पर एक बार जब वहां पहुंचे तो उन्होंने देखा कि मसाला पीसने वाला मिलावट का काम कर रहा था वह हल्दी पीसने के दौरान उसमें चना मिला रहा था क्योंकि उस समय हल्दी महंगा था और चना सस्ता  था जब उन्होंने उसे ऐसा करने से मना किया तो वह बोला कि एक काम करें आप खुद ही मसाला पीसने की फैक्ट्री लगवा ले उसकी बात सुनकर महाशय जी बोले ठीक है हम खुद मसाला पीसने वाली फैक्ट्री लगवाएंगे पर हम शुद्धता से किसी भी तरह  समझौता नहीं करेंगे और फिर उन्होंने  कीर्ति नगर में मसाला पीसने की अपनी पहली फैक्ट्री खोल डाली बस यहीं से जो उनकी सफलता की कहानी शुरुआत हुई वो आज तक चली आ रही  है,
  •   2015-16 में कुल मिलाकर 924 करोड़ का कारोबार हुआ था जिसमें 213 करोड़  रुपया का शुद्ध मुनाफा हुआ था
आज इस कंपनी के द्वारा तरह तरह का मसाला बनाये जाते है,जिनमें प्रमुख रूप से हैं
  • आमचूर  मसाला ,बिरयानी मसाला ,बटर मसाला,चना मसाला,चिकन मसाला,चंकी चाट मसाला,चटनी पाउडर,दहीवडा रायता ,दालमखनी मसाला,मछली मसाला ,गरम मसाला,जलजीरा,किचन किंग मसाला,मीट मसाला ,पानीपुरी ,पावभाजी मसाला ,सांभर मसाला,शाही पनीर मसाला  आदि  
  • इन सभी मसालों का भरी मात्रा में कनाडा,यूएई, अफ्रीका,अमेरिका  आदि देशो में निर्यात किया जाता है 
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  • धर्मपाल जी  खुद अपनी कंपनी के सीईओ है, आज 94 वर्ष की अवस्था में भी  वह सुबह सुबह 5:00 बजे व्यायाम करने के लिए जरूर जाते हैं ,चाहे कितनी भी जल्दी क्यों न हुए अपने परिवार के साथ मिलकर हवन जरूर करते हैं।  
  • समाज सेवा में भी वह बढ़-चढ़कर हिस्सा लेते हैं यही कारण है कि वह कई स्कूल और कई अस्पताल खुलवा चुके हैं जिसमें माता चनन देवी हॉस्पिटल  जिसमें  आज 250   से भी अधिक बेड है यह  अस्पताल 5  एकर से भी अधिक जमीन में फैला है बहुत प्रसिद्ध है
तो दोस्तों यह थी एमडीएच ब्रांड की कहानी आपको कैसी लगी प्लीज कमेंट सेक्शन में जरूर लिखें।।
धन्यवाद दोस्त की आप हमारे इस वेबसाइट पे आये 
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